‘‘ज्ञान का उम्र से क्या सम्बन्ध! मेरी उम्र भले ही कम है, लेकिन मैंने शास्त्रों का अध्ययन किया है. शरीर से मैं कुरूप हूं,  परंतु शरीर से कुरुप होने के अर्थ बुद्धि से कुरूप होना नहीं हा.

सेमल का वृक्ष बड़ा हो जाने पर भी शक्तिशाली नहीं होता. आग की छोटी-सी चिनगारी में भी किसी को जला देने की वैसी ही ताकत होती है जैसी आग के बड़े अंगारे में. उम्र से विद्वता का कोई संबंध नहीं. तुम मेरे आने की सूचना महाराजा जनक को दो.

जनक ने अष्टावक्र को राजदरबार में बुला लिया. अष्टावक्र की उम्र तथा टेढ़े-मेढ़े अंगों को देख कर सब दरबारी हँसने लगे. उन्हें हँसता देख अष्टावक्र भी बड़े जोर से हंस पड़े.

राजा जनक ने उत्सुकता से पूछा- ब्राह्मण देवता! आप क्यों हंस रहे हैं? अष्टावक्र बोले- मैं तो यह समझकर आया था कि यह विद्वानों की सभा है और मैं बन्दी से शास्त्रार्थ करूंगा, पर मुझे लगता है कि मैं मूर्खों की सभा में आ गया हूं.

मैंने अपने हंसने का कारण बता दिया, अब आप अपने मूर्ख दरबारियों से पूछें कि वे किस कारण हंसे? अपनी इस शारीरिक दशा का कारण मैं नहीं. कारण तो वह कुम्हार यानी ईश्वर है, जिसने मुझे ऐसा बनाया. किस पर हंसे ये मूर्ख?

जनक लज्जित हो गए. उन्होंने अष्टाव्रक को आसन दिया और कहा, मुझे तथा मेरे दरबारियों को क्षमा करें. अभी आप बन्दी से शास्त्रार्थ करने की आयु के नहीं हैं. शास्त्रार्थ में हारने वाले को जल-समाधि लेनी पड़ती है. अभी आप और अध्ययन करें.

अष्टाव्रक शास्त्रार्थ की जिद पर अड़े रहे. शास्त्रार्थ शुरू हुआ और जल्द ही बन्दी हार गया. शर्त के अनुसार स्वयं जल-समाधि लेने के लिए तैयार हो गया.

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