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हे गौरी! शंकर अर्धाङ्गिनी यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा माँ कुरुं कल्याणि कान्तं कान्तां सुदुर्लभाम्‌।

(हे गौरी! शंकर की अर्द्धांगिनी, जिस प्रकार आप शिवप्रिया हैं उसी तरह हे कल्याणी! मुझ कन्या को भी दुर्लभ वर प्रदान करें)

अगर केले के वृक्ष के नीचे बैठकर ये अनुष्ठान किए जाएं तो सोने में सुगंध जैसी बात होती है क्योंकि शिव आराधना से पापग्रहों की शांति तो होती ही है, केले के नीचे कम से कम 11 बार बृहस्पति मंत्र के जप से गुरु उच्च हो जाते हैं. गुरु विवाह के प्रबल कारक हैं. गुरु आराधना मंत्र इस प्रकार हैः

ऊं बृं बृहस्पत्ये नमः

प्रस्तुतकर्ताः
डॉ. नीरज त्रिवेदी, ज्योतिषाचार्य व पीएचडी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

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संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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