परीक्षित ने अनेक वर्षों तक धर्मपूर्वक राज्य किया. उनका विवाह उत्तरकुमार की पुत्री इरावती से हुआ था. परीक्षित का एक परम प्रतापी पुत्र हुआ जनमेजय.

एक बार परीक्षित सरस्वती नदी के किनारे घोड़े पर सवार चले जा रहे थे. उन्हें एक पैर पर खड़ा बैल और एक जीर्ण-शीर्ण स्थिति में गाय दिखी.

गाय और बैल आपस में बातें कर रहे थे. तीन टांगे टूटी होने के कारण बैल मुश्किल से खड़ा कराह रहा था. उसने परेशान हाल गाय को देखा तो बात शुरू की.

बैल ने गाय से पूछा- हे पृथ्वी आप इतनी दुखी और कमज़ोर क्यों हो गई हैं? क्या दुष्ट आपको सता रहे हैं या फिर श्रीकृष्ण के अपने धाम चले जाने से धर्म के कमजोर पड़ने से दुखी हैं?

गाय ने कहा- धर्मदेव, जब श्रीकृष्ण यहां थे तब उन्होंने आपका उत्थान किया, अन्याय और अधर्म का नाश किया. परंतु अब कलि के प्रभाव से धर्म का ह्रास हो रहा है.

प्रभु कृपा से सतयुग में तुम तप, पवित्रता, दया और सत्य इन चारों चरणों से युक्त थे, त्रेता में केवल तीन चरण रह गए और द्वापर में बस दो. कलियुग में एक ही चरण सत्य शेष बचा है.

कलि इसे भी मिटाने के प्रयास में लगा है. मैं इसलिए बहुत दुखी हूं कि अब मेरे ऊपर ऐसे अधर्मियों का वास होगा जो ईश्वर को नहीं स्वीकारेंगे और कहेंगे कि पृथ्वी पदार्थों से बनी एक पिंड भर है.

श्रीकृष्ण ने पापियों का संहार कराकर मेरा जो बोझ कम किया था वह फिर से बढ़ रहा है. कलियुग के प्रभाव से पापियों का बोलबाला होने वाला है. मैं इससे दुखी हूं.

गाय और बैल बात कर ही रहे थे कि तभी वहां भयावह आकृति वाला कलियुग पहुंचा और बैल का चौथा पैर (सत्य) तोड़ने का प्रयास करने लगा. बैल पीड़ा में चिल्लाया.

परीक्षित दोनों की सारगर्भित बातें बहुत देर से सुन रहे थे. उन्होंने कलियुग को बैल पर प्रहार करते देखा तो दौड़े आए और उसकी गर्दन पर तलाव रख दी.

कलि को अपनी मृत्यु सम्मुख नजर आ रही थी. इसलिए उसने पैंतरा बदला औ परीक्षित के पैर पकड़कर माफी मांगने लगा.

परीक्षित ने कलि से कहा- मैं अभिमन्यु का पुत्र हूं. यह मेरी प्रजा है. मेरे राज्य में प्रविष्ट होने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ. निकल जाओ यहां से.

कलि ने कहा- सारी पृथ्वी पर आप ही का तो राज्य है, मैं कहाँ जाऊंगा? मुझे भी प्रभु ने ही बनाया है, और जो समय तय किया था उसके अनुसार ही मैं आया हूं.

अब मैं कहां जाऊं? आप राजा हैं. मैं प्रभु द्वारा रचित आपकी प्रजा हूं. इसलिए आपका धर्म है कि आप मेरे लिए रहने के उचित स्थान का निर्धारण करें.

परीक्षित ने विचारकर कहा- तुम्हारा वास वहां होगा जहां ईश्वर का नाम भुलाया जा चुका हो. तुम जुए, शराब, काम वासना, हिंसा, असत्य और निर्दयता में निवास करो.

कलि ने कहा- महाराज मुझे एक ऐसा स्थान बताएं जहाँ ये सब साथ हों, मैं वहीं चला जाऊँगा. परीक्षित ने कहा- स्वर्ण में यह सब है, इसलिए तुम स्वर्ण में रह सकते हो.

परीक्षित की आज्ञा से कलियुग ने तत्काल स्वर्ण में अपना घर जमाया. परीक्षित का मुकुट भी स्वर्ण का था. कलियुग के प्रवेश करने से उनका मस्तक कलि के प्रभाव से प्रभावित हो गया.

कलि के प्रभाव के कारण ही न्यायप्रिय परीक्षित ने ध्यान में लीन शमीक मुनि के गले में मृत सांप डाल दिया जो उनकी मृत्यु का कारण बना. कल परीक्षित द्वारा शमीक के अपमान और परीक्षित की मृत्यु की कथा.

निवेदनः प्रभु की प्रेरणा से इस एप्प की नींव रखकर हम इसे भक्तिरस से सराबोर करने में तन-मन से जुटे हैं.

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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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