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कलियुग का प्रवेश हो चुका था. नारदजी पृथ्वी पर कलियुग का चक्र देख रहे थे. कलि का प्रभाव देखकर उनके मन में तरह-तरह के भाव आ रहे थे. भटकते-भटकते वह नर्मदा क्षेत्र में पहुंचे.
वहां विचरते हुए नारदजी को एक रोती हुई युवती दिखी. उस युवती के पास ही दो पुरुष मूर्च्छित पड़े थे. नारदजी उसके पास गए और रोने का कारण पूछा.
स्त्री बोली- मैं भक्ति हूं. ये दोनों, मेरे पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं. ये असमय ही बूढ़े हो गए और अब मूर्च्छित पड़े हैं. आप इनकी मूर्च्छा दूर कर सकते हैं?
नारदजी को उस पर दया आ गई. उन्होंने भगवान का आह्वान किया और स्त्री का कष्ट दूर करने की याचना की.
परमात्मा ने आकाशवाणी की- मात्र आपकी प्रार्थना से इनकी मूर्च्छा दूर न होगी. कलियुग में यदि ज्ञान व वैराग्य को स्थापित करना है तो संतों से परामर्श, सत्संग और सत्कर्म करना होगा.
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