[sc:fb]

इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र तत्काल समझ गए कि यह सब क्यों हो रहा है. उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया.

इंद्र ने कहा- हे मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है. तुम देवों की सेवा में आज नियुक्त थे किंतु तुम दोनों ने अपने कामभाव को वश में नहीं रखा और सेवा के मध्य वासनापीड़ित हो गए. यह देवताओं की सभा का उपहास है.

तुम दोनों ने अपराध किया है. कामपीड़ित होकर किए इस अपराध के कारण मैं तुम दोनों को स्वर्ग से वंचित करता हूं.

तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो.

इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर दु:खपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे. वे गंध, रस तथा स्पर्श आदि का ज्ञान भूल चुके थे.

पृथ्वी पर बड़े कष्ट भोग रहे थे. उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी. अत्यन्त शीतल स्थान होने से उनके रोंगटे खड़े रहते और दाँत बजते रहते.

एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई.

इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है. अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए. इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here