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माता जानकी भोजन तैयार करके प्रतीक्षारत थीं परंतु संध्या घिरने तक भी अतिथि नहीं पधारे तब अपने देवर लक्ष्मणजी को बगीचे में भेजा.

लक्ष्मणजी ने तो अवतार ही लिया था श्रीराम की सेवा के लिए. अतः बगीचे में आकर जब उन्होंने धरती पर स्वर्ग का नजारा देखा तो खुद भी राम नाम की धुन में झूम उठे.

महल में माता जानकी परेशान हो रही थीं कि अभी तक भोजन ग्रहण करने कोई भी क्यों नहीं आया. उन्होंने श्रीराम से कहा भोजन ठंडा हो रहा है चलिए हम ही जाकर बगीचे में से सभी को बुला लाएं.

जब सीताराम जी बगीचे में गए तो वहां राम नाम की धूम मची हुई थी. हुनमान जी गहरी नींद में सोए हुए थे और उनके घर्राटों से अभी तक राम नाम निकल रहा था.

श्रीसियाराम भावविह्वल हो उठे. श्रीरामजी ने हनुमानजी को नींद से जगाया और प्रेम से उनकी तरफ निहारने लगे. प्रभु को आया देख हनुमानजी शीघ्रता से उठ खड़े हुए. नृत्य का माहौल भंग हो गया.

शिवजी खुले कंठ से हनुमान जी की राम भक्ति की सराहना करने लगे. हनुमानजी सकुचाए लेकिन मन ही मन खुश हो रहे थे. श्रीसीयारामजी ने भोजन करने का आग्रह भगवान शिव से किया.

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