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महादेव ने अंधक का अपने त्रिशूल में उठा लिया. अंधक के शरीर से गिरते रक्त से उनका शरीर नहा गया. अंधक के शरीर से धरती पर गिरती रक्त की हर बूंद से एक अंधक पैदा हो जाता था.

कुछ ही समय में युद्धभूमि में अंधक ही अंधक भर गए. शिव जितना विनाश करते उतने ही अंधक बन जाते. क्रोध में हुंकार भरते महादेव ने लालट पर उभरी पसीने की बूंदें धरती पर फेकीं.

उससे एक बालक और एक बालिका पैदा हुए. दोनों अत्यंत क्रोधित मुद्रा में युद्ध के लिए उत्सुक थे. दोनों अंधक के शरीर से बहते रक्त को पीने लगे. बालक का नाम मंगल और बालिका का नाम चर्चिका पड़ा.
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