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तुम शरणागत हो इसलिए क्षमा करता हूं. मैं तुमसे प्रसन्न हूं कोई वरदान मांग लो. क्रौंच आदत से मजबूर था. गणेशजी से प्राणदान मिलते ही फिर से उसमें अहंकार जाग गया.

वह गणेशजी से बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन यदि आप मुझसे कोई इच्छा रखते हों तो कहें मैं आपकी इच्छा पूरी कर दूंगा.

मूषक की गर्वभरी वाणी सुनकर गणेशजी मुस्कुराए और कहा- यदि तुम्हारा वचन सत्य है तो तुम मेरा वाहन बन जाओ. मूषक ने बिना देरी किए ‘तथास्तु’ कह दिया.

गणेशजी उस पर सवार हुए. गजानन के भार से दबकर उसके प्राण संकट में आ गए. उसने गणेशजी से अपना भार कम करके वहन करने योग्य बनाने की विनती की.

इस तरह मूषक का गर्व चूरकर गणेशजी ने उसे अपना वाहन बना लिया. यही कारण है कि आज भी लोग अपने घरों में चूहों के उत्पात मचाने पर भगवान गणेश को याद करते हैं. (गणेश पुराण कथा)
संपादनः राजन प्रकाश

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1 COMMENT

  1. यह बहुत ही रोचक कहानी था …..!!! सच मेँ पढके मजा आ गया …..!!!!

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