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सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थे. उनकी पतिव्रता पत्नी मनोमयी इतनी रूपवती थीं कि उनके रूप पर यक्ष गंधर्व आदि सभी मोहित थे.
मनोमयी के पतिव्रता और सौभरि की पत्नी होने के कारण गंधर्व मनोमयी की ओर देखने का साहस नहीं कर पाते थे लेकिन क्रौंच नाम एक दुष्ट गंधर्व से न रहा गया.
क्रोंच ऋषि पत्नी के हरण का अवसर देखने लगा. एक बार ऋषि लकड़ियां लाने वन गए. कौंच को मनोमयी के हरण का यह उचित समय लगा. वह आश्रम में आया.
कौंच मनोमयी का हाथ पकड़कर खींचकर अपने साथ ले जाने लगा. ऋषि पत्नी उससे दया की भीख मांगने लगी. उसी समय सौभरि ऋषि आ पहुंचे.
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यह बहुत ही रोचक कहानी था …..!!! सच मेँ पढके मजा आ गया …..!!!!