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वहां पहुंचकर विश्वकर्मा ने सारी बात विस्तार से कह सुनाई. विश्वकर्माजीके साथ यह बुरा व्यवहार सुनकर श्रीहरि को भी कष्ट हुआ. ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु से इसका समाधान निकालने को कहा.
विष्णुजी ने सारी बात सुनने के बाद तय किया कि इंद्र को देवराज होने का घमंड होता जा रहा है. देवराज के लिए तो यह अशोभनीय है.
बिना उनका अहंकार नष्ट किए बिना बात नहीं बनेगी. भगवान श्रीहरि ने ब्रह्माजी और विश्वकर्माजी से कहा कि आप चिंता न करें. मै शीघ्र ही इसका निदान कर दूंगा.
दोनों भगवान से मिले इस वचन के बाद अनुमति लेकर प्रसन्न मन से चल पड़े.
श्रीभगवान ने बटुक यानी छोटे ब्राह्मण बालक जो शिक्षा ग्रहण के लिए गुरूकुल जाते हैं. बटुक बनकर श्रीहरि इंद्र के पास गए.
उन्होंने इंद्र से कहा- हे देवराज मैं आपके अद्भुत भवन के निर्माण की प्रशंसा संसार में दूर-दूर तक फैली है. मैंने भी इसे सुना तो रोक न पाया और इसके बारे में जानने चला आया हूं.
हे देवराज, क्या आप बता सकते हैं कि यह भवन कुल कितने विश्वकर्मा मिलकर तैयार कर रहे हैं और यह पूरी तरह बनकर कब तक तैयार हो जायेगा?
इंद्र ने उपहास की मुद्रा में कहा- यह भी कोई प्रश्न हुआ? क्या विश्वकर्मा भी दो-चार हुआ करते हैं?
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