[sc:fb]

इसका अर्थ हिंदी में इस प्रकार कहा जा सकता हैः

शिवजी बोले- देवी! सुनो। मैं उत्तम कुञ्जिकास्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है॥1॥

कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त , ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी (आवश्यक) नहीं है॥2॥

केवल कुञ्जिका के पाठ से दुर्गा-पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। यह (कुञ्जिका) अत्यन्त गुप्त और देवों के लिये भी दुर्लभ है॥3॥

हे पार्वती! इसे स्वयोनि की भाँति प्रयत्‍‌नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये। यह उत्तम कुञ्जिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है॥4॥

मंत्रः
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा (इस मन्त्र में आये बीजों का अर्थ जानना न सम्भव है, न आवश्यक और न वाञ्छनीय… केवल जप पर्याप्त है…)

हे रुद्रस्वरूपिणी! तुम्हें नमस्कार…हे मधु दैत्य को मारने वाली! तुम्हें नमस्कार है…कैटभविनाशिनी को नमस्कार… महिषासुर को मारने वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है॥1॥

शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली! तुम्हें नमस्कार है॥2॥

हे महादेवि! मेरे जप को जाग्रत् और सिद्ध करो। ऐंकार के रूप में सृष्टिस्वरूपिणी, ह्रीं के रूप में सृष्टि-पालन करने वाली॥3॥

कीं रूप में कामरूपिणी तथा (निखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी! तुम्हें नमस्कार है… चामुण्डा के रूप में चण्डविनाशिनी और यैकार के रूप में तुम वर देने वाली हो॥4॥

विच्चे रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। (इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मन्त्र का स्वरूप हो॥5॥

धां धीं धूं के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्‍‌नी हो। वां वीं वूं के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। क्रां क्रीं क्रू के रूप में कालिका देवी, शां शीं शूं के रूप में मेरा कल्याण करो॥6॥

हुं हुं हुंकार स्वरूपिणी, जं जं जं जम्भनाशिनी, भ्रां भ्रीं भ्रूं के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हें बार-बार प्रणाम॥7॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं… धिजाग्रं धिजाग्रं इन सबको तोडो और दीप्त करो करो स्वाहा… पां पीं पूं के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो… खां खीं खूं के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो॥8॥

सां सीं सूं स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिये सिद्ध करो…यह कुञ्जिकास्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिये है…इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए…हे पार्वती! इसे गुप्त रखो… हे देवी! जो बिना कुञ्जिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है…

क्यों लाखों लोग प्रभु शरणम् को बताते हैं सर्वश्रेष्ठ हिंदू ऐप्प. परखें ,फिर निर्णय करें.

मोबाइल में लिंक काम न करे तो प्लेस्टोर में सर्च करें-PRABHU SHARNAM

 

3 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here