नवरात्रों में सप्तशती के पाठ का विशेष रूप से विधान कहा गया है किंतु 700 श्लोकों का पाठ सभी नहीं कर पाते, खासतौर से कामकाजी लोग जिन्हें नौकरी आदि पर जाना होता है. यह पाठ नहीं कर पाने से उनके मन में थोड़ा पश्चाताप का भाव रहता है. पूरी श्रद्धा-भक्ति से माँ की पूजा करें तो मां प्रसन्न होती हैं. दुर्गा सप्तशती के पाठ के दो विकल्प कहे गए हैं.
1. श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा जिसमें दुर्गा सप्तशती के सात ऐसे मंत्रों का संकलन है जिससे पूरे पाठ का फल मिलता है. इसके बारे में हमने कल आपको बताया था.
2. देवी भागवत पुराण में वर्णित सिद्धकुंजिका स्तोत्र.
आज आपको देवी के सिद्धकुंजिका स्तोत्र से परिचित करा रहे हैं.
दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों, कवच, कीलक, अर्गला, न्यास के पाठ का पुण्य प्राप्त करने का एक और उपाय बताया गया है- देवी कुंजिका सिद्ध स्तोत्र. इसकी महत्ता के बारे में स्वयं शिवजी ने बखान किया है.
देवी ने महादेव इस सिद्धकुंजिका स्तोत्र का महात्म्य पूछा तो महादेव ने उन्हें बताया- “हे देवी! यह सिद्धमंत्र है. दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह कुंजिकास्तोत्र के पाठ से भी प्राप्त हो जाता है.”
शिवजी ने कुंजिकास्तोत्र को सिद्ध मंत्र माना है. जो साधक संकल्प लेकर इस मंत्र को जपते हुए मां दुर्गा की आराधना करते हैं, मां उन पर प्रसन्न होती हैं.
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तो यदि आप संपूर्ण अध्यायों का पाठ नहीं कर पा रहे तो प्रतिदिन इस स्तोत्र का ही पाठ कर लें.
वैसे जो लोग दुर्गासप्तशती का पाठ कर लेते हैं उनके लिए भी कुछ विधि-विधान बताए गए हैं. कहां पर विराम लेना चाहिए. कितने अध्याय का पाठ एक साथ करना चाहिए. कितने दिन में कितने अध्याय का पाठ होना आवश्यक है.
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चलिए अभी सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की बात करते हैं.
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