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कवि विद्यापति पक्के शिवभक्त थे. कहते थे जो भी कविताई है शिवजी का प्रसाद है. भोले बाबा तो शीघ्र ही प्रसन्न हो जाने वाले हैं सो विद्यापति की निस्स्वार्थ सरल सहज भक्ति से बड़े प्रसन्न हो गए.
शिवजी तो ऐसे रीझ गए कि उनका विद्यापति के बिना मन ही न लगता. एक दिन शिवजी एक निपट निरक्षर और गंवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये.
विद्यापति को शिवजी ने अपना नाम उगना बताया कहा कि उन्हें अपने साथ रख लें, वह उनकी सेवा टहल कर दिया करेंगे. विद्यापति खुद गरीब थे उगना को नौकरी पर कैसे रखते!
पर उगना ने तो जिद ही पकड़ ली. सिर्फ दो वक्त के भोजन पर तैयार हो गया. पर विद्यापति के लिये तो यह भी कम मंहगा सौदा न था. पर विद्यापति की पत्नी को यह सौदा मंजूर था.
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