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भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के रूप-गुण की बड़ी चर्चा थी. अनिरूद्ध में अपने दादा के बड़े गुण आए थे. प्रभु ने रुक्मिणी का हरणकर प्रेम विवाह किया था और रुक्मिणीजी के भाई रुक्मी के साथ युद्ध करना पड़ा था.

शिवजी का महान भक्त था राक्षसराज बाणासुर. बाणासुर ने शिवजी को घोर तप करके मोह लिया और जो चाहता वह वरदान ले लेता था. (बाणासुर के तप और महादेव को प्रसन्न करने की था अगली पोस्ट में सुनाउंगा. अभी अनिरूद्ध की कथा को आगे बढ़ाता हूं)

बाणासुर की कन्या उषा परम रूपवती थी. अनिरूद्द भी कामदेव समान सुंदर थे. उषा ने अनिरूद्ध के रूप-बल की चर्चा सुनी थी. उसने अनिरुद्ध को कभी देखा तो नहीं था लेकिन मन ही मन में उनकी एक छवि बना ली थी.

एक दिन उषा ने सपने में अनिरूद्ध को देखा. उसे अनिरूद्ध से गहरा प्रेम हो गया और उनसे विवाह की ठान ली. सुबह उसने सपने की बात अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई. चित्रलेखा कई मायावी शक्तियों में निपुण थी.

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