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अर्जुन लज्जित हो गए. उन्होंने फिर प्रयास किया. हनुमानजी ने फिर वैसा ही किया. अर्जुन बार-बार अपने दिव्यास्त्रों का आह्वान कर पुल बनाते और हनुमानजी ध्वस्त कर देते.

अर्जुन को आत्मग्लानि हो रही थी. मेरी जिस धनुर्विद्या पर पांडवों का पूरा मान टिका हुआ है उसमें इतना भी सामर्थ्य नहीं कि वह एक वानर के चलने योग्य पुल बना सके.

अर्जुन ने प्रण किया कि अगर इस बार भी वह असफल रहे तो समुद्र में कूदकर प्राण दे देंगे. अर्जुन ने अपनी समस्त शक्तियों का आह्वान कर और श्रीकृष्ण का स्मरण कर तीर चलाया और पुल बनाया.

हनुमानजी फिर उस पुल को तोड़ने के लिए चढ़े लेकिन श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र उसका आधार बन गया जिससे पुल टूट नहीं पाया.

श्रीकृष्ण कछुए का वेश धरकर वहां आए. उन्होंने अर्जुन को आत्महत्या के विचारों के लिए खूब खरी-खोटी सुनाई और अभिमानमुक्त होने की सीख दी.

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