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बात तब की है जब पांडव जुए में राजपाट हारकर वनवास झेल रहे थे. भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव पर अर्जुन विभिन्न देवताओं को प्रसन्न कर उनसे शक्तियां प्राप्त कर रहे थे. वह प्रत्येक तीर्थ पर गए.
अर्जुन अपनी यात्रा में रामेश्वरम पहुंचे. वहां श्रीराम ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर विशाल सेतु का निर्माण किया था. अर्जुन को पुल निर्माण में श्रीराम को आई बाधाओं और वानर सेना के परिश्रम के बारे में सुनने को मिला.
अर्जुन अहंकारवश सोचने लगे कि श्रीराम अतुलनीय धनुर्धर थे. फिर उन्हें पुल बनाने के लिए वानर सेना से पत्थर क्यों डलवाने पड़े. वह अपने बाणों की सहायता से समुद्र पर आसानी से पुल बना सकते थे.
हनुमानजी को यह बात चुभी. वह अर्जुन से बोले- अगर तुम बड़े धनुर्धर हो तो क्या अपने बाणों से एक ऐसा पुल बना सकते हो जो सिर्फ मेरा भार सहन कर सके.
अर्जुन इस चुनौती से तैश में आ गए. उन्होंने दिव्य बाण चलाए और फटाफट हनुमानजी के लिए एक पुल बना दिया. हनुमानजी ने अपना एक पांव रखा और पुल धंसकर समुद्र में समा गया.
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