भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी, जयझूलनी, वामन एकादशी, डोल ग्यारस आदि नामों से जाना जाता है. परिवर्तिनी एकादशी को चतुर्मास के लिए विश्राम कर रहे नारायण करवट बदलते हैं.
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देवशयनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार मास के विश्राम पर जाते हैं. देव उठनी या प्रबोधिनी एकादशी को हरि विश्राम का त्याग करेंगे और संसार का कार्य संभाल लेंगे. इस बीच भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के संध्याकाल में नारायण करवट बदलते हैं. इस करवट परिवर्तन के कारण यह एकादशी परिवर्तिनी एकादशी कहलाती है. परिवर्तिनी एकादशी को भगवान ने वामन रूप धरकर बलि का सर्वस्व लिया था इसलिए इसे वामन एकादशी भी कहते हैं.
भाद्रपद एकादशी को हरि का शरीर करवट बदलने के लिए डोलता है इसलिए इसे डोल एकादशी भी कई स्थानों पर कहा जाता है. इस बार परिवर्तिनी एकादशी या डोल एकादशी 02 सितंबर 2017 शनिवार को होगी. चार मास के विश्राम में श्रीहरि विष्णु के करवट परिवर्तन के उपलक्ष्य में परिवर्तिनी एकादशी को संध्याकाल में विशेष पूजन और हरिनाम जप करना चाहिए.
इस पोस्ट में आप जानेंगेः
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत की विधि
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत को क्या करें
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा
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परिवर्तिनी एकादशी व्रत की विधिः
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरु करें.
- पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें.
- परिवर्तिनी एकादशी के दिन सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान वामन या विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें.
- इस दिन यथासंभव उपवास करें. उपवास में अन्नग्रहण न करें. एक समय फलाहारी कर सकते हैं.
- भगवान नारायण की पूजा विधि-विधान से करें.
- भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं. स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीए भी.
- इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें.
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. पूरे दिन यथासंभव हरिनाम का जप करें.
- परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनें एवं श्रीहरि की कथाओं का श्रवण करना चाहिए दूसरों को भी सुनाना चाहिए.
- एकादशी की रात को भगवान की मूर्ति के समीप हो भूमि पर शयन करना चाहिए और दूसरे दिन यानी द्वादशी को वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर पारायण करना चाहिए.
जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस परिवर्तनी एकादशी व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होते हैं। अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं. इस परिवर्तिनी एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
इस एकादशी के फलों के विषय में जरा भी संदेह नहीं है, कि जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन वामन रुप की पूजा करता है, एवं ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की पूजा करता है. उसे मोक्ष के लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहता है.
अगले पेज पर पढ़िए परिवर्तिनी एकादशी की कथा जो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताई थी.
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