parvatiji ganesh ji

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मधुश्रावणी में सुनाई जाने वाली एक लोककथा सुनाता हूं जिसे ननद-भाभी के बीच नोंक-झोंक के रिश्ते का आधार बताया जाता है.

एक बार पार्वतीजी के मन में आया कि काश उनकी भी एक ननद होती तो उनका मन लगा रहता. परंतु भगवान शिव तो अजन्मे थे. उनका जन्म तो हुआ ही नहीं था तो माता-पिता और भाई-बहन का प्रश्न ही न था.

जाहिर है कोई बहन नहीं थी भोलेबाबा की. इसलिए पार्वतीजी मन की बात मन में रख कर बैठ गयी. शिव तो अन्तर्यामी हैं. उन्होंने पार्वतीजी के मन की समझ ली पर अंजान बनकर बार-बार पूछते रहे.

पार्वतीजी से उन्होंने कहा- तुम्हारे मन में कुछ चल तो रहा है. मन में मत रखो उसे बता दो शायद मैं निराकरण कर सकूं.

पार्वती ने मन मसोसकर कहा- काश उनकी भी कोई ननद होती जो उनसे हंसी ठिठोली करती.

भगवान शिव ने कहा- ननद तो आ जाएगी लेकिन क्या ननद के साथ आपकी निभेगी. कहीं उसके साथ झगड़ा-विवाद होने लगा तो क्या होगा.

पार्वती जी ने कहा- ननद से मेरी क्यों न बनेगी? मैं निभा लूंगी.

शिवजी बोले- वचन दो कि अगर मेरी बहन ने तुम्हारा भूले से भी अपमान कर दिया तो तुम उसे दंडित नहीं करोगी. पार्वती तुम सर्वसमर्थवान हो. मुझे तो भय है कि तुम्हारे कोप के कारण कहीं वह भस्म न हो जाए.

पार्वतीजी ने कहा- आप उसकी चिंता न करें, मैं घर-गृहस्थी में अब निपुण हो गई हूं. मैं उन्हें अपनी छोटी बहन समझकर निभा लूंगी कोई कोप न करूंगी.

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