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तीरथ नाम का एक कुम्हार जितना कमाता था, उससे उसका घर आसानी से चल जाता था. तीरथ को अधिक धन की चाह थी भी नहीं थी. वह दिन भर बर्तन बनाता. दोपहर में बर्तन बेचने जाता. शाम को घंटों बांसुरी बजाता.
इसी तरह उसके दिन आनंद-उमंग में बीतते जा रहे थे. परिवार वालों ने तीरथ की एक सुंदर लड़की कल्याणी से शादी कर दी. कल्याणी जितनी सुंदर थी उतनी ही सुशील. वह पति के काम में हाथ बंटाती, घर भी संभालती. इससे तीरथ की कमाई पहले से काफी बढ़ गई.
पति-पत्नी दोनों जीवन का आनंद ले रहे थे. तीरथ और कल्याणी दोनों को हमेशा खुश देखकर जलते थे. उन्हें जलन होती कि पति-पत्नी दोनों दिन भर मिलकर काम करते है, पति प्रतिदिन शाम को बांसुरी बजाता और पत्नी गीत गुनगुनाती रहती है. दोनों में झगड़ा भी नहीं होता.
पड़ोस की महिलाओं द्वारा सिखाने पर एक दिन कल्याणी ने तीरथ से कहा- तुम जितना कमाते हो वह रोज खर्च हो जाता है. आमदनी बढ़ानी पड़ेगी. पड़ोसी घर खर्च में से कुछ न कुछ भविष्य के लिए बचाकर रखते हैं. हमें भी अपनी कमाई से बचत करनी चाहिए.
तीरथ बोला- “हमें ज्यादा कमा कर क्या करना है? ईश्वर ने हमें इतना कुछ दिया है, मैं इसी से संतुष्ट हूं. छोटा ही सही, पर हमारा अपना घर है. दोनों वक्त हम पेटभर खाते हैं, भगवान की पूजा-पाठ करते खुशी से जीवन बिता रहे हैं. हमें और क्या चाहिए?”
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Very nice and heart touching literature.
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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