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सिंधु दैत्य ने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया था. श्रीहरि ने सिंधु से वरदान मांगने को कहा.
सिंधु ने मांगा- आप बैकुंठ त्यागकर मेरे नगर में ही निवास करें.
वचनबद्ध श्रीहरि सिंधु के नगर में निवास करने लगे. इससे सिंधु दैत्य की शक्ति बढ़ गई. देवताओं पर जब भी संकट आता था तो श्रीविष्णु उन्हें संकट से निकालते थे, लेकिन वह तो अब खुद सिंधु के बंदी जैसे हो गए थे.
इससे देवताओं में हाहाकार मच गया. शिवजी भी कैलाश को त्यागकर किसी अन्य स्थान पर साधना में रत थे. सिंधु के अत्याचारों से पीड़ित देवों के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा कैलाश पर आए.
उनकी भेंट गणेशजी से हुई. बालक गणेश मात्र छह वर्ष के थे. श्रीगणेश ने विश्वकर्माजी से पूछा- मुझसे मिलने आए है तो मेरे लिए कोई उपहार लाए हैं?
विश्वकर्मा ने कहा-आप स्वयं सच्चिदानंद हैं. मैं आपको क्या उपहार दे सकता हूं. आपकी कृपा से मैं देवों के लिए आयुध बना रहा हूं. आप उनमें से चुन लें.
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