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माता ने दिया काशीराज को अभयदान, श्रीराम से युद्ध को तैयार हो गए हनुमान. क्यों हनुमानजी को सीताजी के शरणागत की रक्षा के लिए प्रभु से युद्ध की नौबत आ गई.

नारद मुनि का स्वभाव ऐसा है कि वह झगड़ा सुलझाने से ज्यादा झगड़ा लगाने वाले हैं. काशीनरेश अयोध्या में भगवान श्रीराम के दर्शनों के लिए पहुंचे.

नारदजी भी प्रभुदर्शन को आए थे. नारद ने काशीराज को समझा दिया कि आप दरबार में सबको प्रणाम करना लेकिन वहां बैठे विश्वामित्र को प्रणाम न करना.

काशी नरेश ने कारण पूछा तो नारदजी ने कहा कि प्रभु की ऐसी ही मंशा समझ लो. बाकी का मर्म आपको बाद में बताउंगा.

काशीराज ने नारद के कहे मुताबिर सबको प्रणाम किया लेकिन विश्वामित्र को प्रणाम नहीं किया. विश्वामित्र क्रोधित हो गए.
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