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पिछली कथा में आपने पढ़ा- पांच बेटों में से तीन तो अपनी पितृप्रेम की परीक्षा में पास हो गए. चौथे बेटे विष्णु को कहा- स्वर्ग से अमृत कलश लाओ, मुझे पिलाओ. विष्णु अमृत कलश हासिल करने गया तो इंद्र ने बड़ा परेशान किया. पिछली कथा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
आखिरकार विष्णु शर्मा को गुस्सा आ गया और जब वह अपने तप बल का प्रयोग कर इंद्र को उनके पद से उतारने की तैयारी कर बैठे तो इंद्र खुद अपने हाथों विष्णुशर्मा को अमृत कलश सौंपने आए. इंद्र से अमृत भरा घड़ा लेकर विष्णु ने अपने पिता को दे दिया.
शिवशर्मा अमृत पाकर बहुत खुश हुए. सभी बेटों को बुलाया और बोले- तुम सब की पितृभक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं. तुम लोग कोई वरदान मांगना चाहते हो तो मांग लो.
बेटों ने एक स्वर से कहा- हमारी मां को जीवित कर दीजिए. शिवशर्मा ने फिर अपनी सिद्धि का सहारा लिया और मां जीवित होकर बेटों के बीच खड़ी हो गईं.
शिवशर्मा ने पूछा- बेटों मैं तो तुम्हें आज स्वर्ग या अक्षयलोक तक दे सकता था तुमने वह क्यों नहीं मांगा? बेटों ने कहा- ठीक है आप अब वही वर दे दीजिए. शिवशर्मा ने कहा- ऐसा ही हो. इतना कहना था कि रोशनी बिखेरता अक्षयलोक का दिव्य विमान उतर आया.
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