ऊर्वारूकमिव बन्धनात मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् का सरल अर्थ कहूं तो- हे प्रभु जब हम उस अवस्था के हो जाएं जब नए फल को धारण करने के लिए वृक्ष गले हए फल को अपनी डाल से अलग करता है, तब आप हमें इस संसार से मुक्त कर दें.
हर जीव की आयु है. उसे पूर्ण होते ही विदा होना चाहिए. तभी तो नया बनेगा. यह कार्य क्रूर लग सकता है किंतु समझें तो परम कल्याणकारी. इस कार्य के लिए निष्काम होना जरूरी है. सबसे निष्काम आदिदेव महादेव यही दायित्व स्वीकारते हैं.
शिवजी का चरित्र, महिमा और तत्व को समझने के लिए शिवमहापुराण से श्रेष्ठ कोई ग्रंथ नहीं है. कारण, स्वयं शिवजी ने इसे रचा है. अतः इसकी प्रामाणिकता संदेह से परे है.
शिवजी ने इसे नंदी को सुनाया, नंदी ने सनत्कुमार को, सनत्कुमार से व्यासजी ने सुना. व्यासजी ने अपने शिष्य सूतजी को और फिर से सूतजी से नैमिषारण्य में उपस्थित साठ हजार ऋषियों ने शिवमहापुराण सुना और प्रचारित किया.
ऐसे बड़े स्तर पर हुए प्रचार से इसका मूल तत्व सुरक्षित रहा. ऋषियों ने सूतजी से पूछा– हे देव! जगत में बढ़ती नास्तिकता दुखों का कारण बनेगी तो उसका निवारण कैसे होगा. सूतजी ने कहा था कि शिवमहापुराण के श्रवण से होगा निवारण.
वर्तमान में वही स्थिति आ गई है. धर्म को धारण करें, धर्म आपको धारण कर आपकी रक्षा करेगा. शिवमहापुराण और भागवत महापुराण इसमें सबसे बड़े सहयोगी सिद्ध होंगे. इनमें कल्याण का मार्ग खोजना होगा.
शिव सदैव पूज्य हैं किंतु सावन शिवोपासना का विशेष काल है. महादेव शिव शंभु एप्पस में संपूर्ण शिवमहापुराण को कथा की तरह संक्षेप में देने का प्रयास हो रहा है. अनुरोध है कि Mahadev Shiv Shambhu Apps डाउनलोड कर लें. शिवभक्ति का एक सुंदर संसार मिलेगा.
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