जीवन-की-कला-प्रभु शरम्
जीवन-नहीं-मरा-करता

एक दिन ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि, कुमार कार्तिकेय का जन्म देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति का पद संभालने और तारकासुर को मारने के निमित्त हुआ था. भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध कर दिया. इसके बाद क्या हुआ

सूतजी बोले- तारकासुर वध से प्रसन्न हो सभी देवतागण कुमार कार्तिकेय के पास पहुंचे. उन्हें नमस्कार कर उनकी प्रशंसा की. देवताओं के पीछे पर्वतगण भी थे. उन्होंने तो भगवान कार्तिकेय की न सिर्फ भरपूर आराधना की. कार्तिकेय प्रसन्न हुए.

सूत जी बोले इस अवसर पर भगवान कार्तिकेय ने महादेव शिव का महात्म्य बताते हुए. राजा श्वेत की एक रोचक कथा सुनाई. वह कथा बताती है कि शिवभक्त कैसे काल को भी जीत लेता है.

एक राजा थे, नाम था श्वेतकेतु. सदाचारी, सत्यवादी, धर्म के मार्ग पर चलने वाले शूरवीर और प्रजा पालक. अपनी पूरी ताकत से प्रजा का पालन और समूची निष्ठा और लगन से शिव भक्ति यही उनका काम था.

भोले की कृपा से उनके राज्य के लोग दुख, दरिद्रता, अकालमृत्यु महामारी से बहुत दूर थे. हर क्षण धर्म और प्रजा पालन में बुद्धि लगाये राजा अपना लंबा जीवन बिना किसी रोग, दोष, शोक के काटा.

बुढ़ापे में एक दिन जब वे अपने परामर्श दाता ठाकुरजी की आराधना में लीन थे. उनका जीवनकाल समाप्त हो गया. चित्रगुप्त ने धर्मराज से कहा था कि राजा श्वेतकेतु की आयु अब पूरी हो चुकी है.

ऐसे में यमराज ने अपने दूतों के आज्ञा दी कि वे जायें और श्वेतकेतु के प्राण हर लायें. यमदूत जो आज्ञा कह कर हाथों में काल पाश ले चल निकले. यमदूत राजा श्वेतकेतु के पास पहुंचे तो वह शिवमंदिर में थे.

दूत बाहर ही खड़े हो गए. श्वेतुकेतु गहरे ध्यान में थे. बहुत देर हो गयी श्वेतकेतु का ध्यान नहीं टूटा न यह दूत हिले. दूत बिना अपना काम किए खड़े रहे. जब वे वापस यमराज तक नहीं पहुंचे तो यमराज ने विलंब होते देखा तो कालदंड संभाला और खुद चल पड़े.

धर्मराज हाथों में कालदंड को ऊपर उठाये इस तरह पहुंचे कि वे अभी दूतों को देरी के लिये दंड़ देंगे और वे श्वेतुकेतु के प्राण को लेकर चल देंगे. पर यहां तो माजरा दूसरा था. श्वेतुकेतु को शिव के गहन ध्यान में देख यमराज भी ठिठक गये.

शीघ्र ही यह सूचना काल तक पहुंच गयी. वह भी वहां उपस्थित हो गया. यह सब देखने के बाद उसने कहा- धर्मराज, आपके पास दूत भी हैं और कारण भी. कुलिश, पाश और कालदंड भी. फिर भी अभी तक आप इसके प्राण क्यों नहीं हर पा रहे.

धर्मराज यह बहुत ही अशोभनीय है कि आप न केवल इसके प्राण लेकर नहीं जा पा रहे हैं बल्कि डरे हुए भी प्रतीत होते हैं. यमराज ने विनम्रता से कहा- यह भगवान शिव का अनन्य भक्त है. यह अभी पूरी तरह शिवपूजा में डूबा है हम इसका उल्लंघन नहीं कर सकते.

त्रिशूलधारी भगवान महादेव के भय से ही हम यहां मूर्ति बने खड़े हैं. यह सुनकर काल क्रोधित हो गया. अभी यह सारी बातें शिवालय के बाहर ही चल रहीं थी. काल ने तलवार निकाला और शिवमंदिर में जा घुसा.

काल ने देखा कि राजा श्वेतुकेतु अभी भी भगवान शिव के लिंग स्वरूप के सामने बैठे ध्यानमग्न हैं. वह झपट कर आगे बढा. उसने राजा श्वेतकेतु का सिर काटने को जैसे ही तलवार उठाई शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर काल की ओर देखा.

काल को चीत्कार करने भर का समय न मिला. वहीं श्वेतकेतु के सामने ही जलकर भस्म हो गया. यमराज और यमदूत तो पहले ही दूर हो चुके थे. थोड़ी देर बाद जब राजा श्वेतकेतु का ध्यान टूटा.

आंख खोलीं तो राख में बदल चुके काल को देखा. उन्हें चिंता हुई कि यह कौन है और क्या है? श्वेतकेतु ने भगवान शिव से पूछा- हे भगवन आपको बारंबबार नमस्कार है, यह क्या कौतुक है, कौन है जो मेरे आगे जला दिया गया.

इसे किसने और क्यों जलाया मुझे नहीं पता. इस अद्भुत कार्य का रहस्य कृपया बतायें. पहले त शिव कुछ न बोले पर जब राजा श्वेतकेतु विलाप करने लगे तो भगवान शिव ने कहा, यह काल है.

तुम्हारे प्राण हरने आया था. जिसका भी जीवनकाल समाप्त हो जाता है उसे ले जाता है. धरती पर कुछ और सदाचारियों का भला तुम्हारे जरिये हो सके इसलिये मैंने इसे जला दिया. श्वेतकेतु बोले- महादेव इसने कौन सा ऐसा कुकृत्य किया था.

यह काल तो आपकी ही आज्ञा से की तीनों लोक में विचरता है, लोक को नियंत्रण में रखता है. इसी के भय से तो लोग पुण्य कार्य करते हैं. भगवन आप इसे शीघ्र ही जीवित कर दें. भगवन शिव ने काल को जीवित कर दिया.

काल की आखें खुली तो सबसे पहले उसने राज श्वेतकेतु को अपने गले लगा लिया. इसके बाद काल ने महादेव की बहुत लंबी स्तुति की फिर श्वेतकेतु से बोला, राजन तुम सा तो तीनों लोक में भी कोई नहीं.

तुमने तीनों लोकों में अजेय काल को भी जीत लिया. मुझे भगवान शिव की तरफ से अभय दान दो. राजा ने काल को नमस्कार किया कहा, काल आप तो स्वयं ही भगवान शिव के स्वरूप हैं और मेरे लिये पूजनीय हैं आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा.

राजा श्वेतकेतु का उत्तर सुनकर काल चला गया. काल ने अपने दूतों से कहा कि जो लोग सच्ची शिव आराधना में लीन रहते हैं सिर पर जटा और गले में रुद्राक्ष पहनते हैं. विभूति का त्रिपुंड ललाट पर लगाते और पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कभी मेरी नगरी में न लाना.

आगे चल कर इसी तरह का आदेश यमराज ने भी दिया. श्वेतकेतु अब काल से निर्भय हो गये थे. उन्होंने लंबे समय तक राज किया और एक समय उससे मुक्त हो कर भगवान शिव का सायुज्य प्राप्त कर लिया यानी शिवतत्व में ही विलीन हो गये.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

2 COMMENTS

  1. Kaalo k kaal Maha Prabhu Mahakaal. Issi liye Prabhu k sache bhakto ko kaal ka koi vay nahi hota kyuki unki raksha to swayam Mahadev sadev karte hai. Aur kripanidhi Bholenath k bhakt unhi ki tarha kripalu bhi hote hai. Mere Bholenath ki mahima aparampar. Jai Gauri Shankar

    Kaal uska kya bigade jo bhakt ho Mahakaal ka. Om Namah Shivay

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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