शिवजी ने पार्वतीजी को उनके पूर्वजन्म का स्मरण कराने के लिए तीज की कथा सुनाई थी.शिवजी कहते हैं-हे पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था. अन्न-जल त्यागा,पत्ते खाए,सर्दी-गर्मी,बरसात में कष्ट सहे.
तुम्हारे पिता दुःखी थे. नारदजी तुम्हारे घर पधारे और कहा- मैं विष्णुजी के भेजने पर आया हूं. वह आपकी कन्या से प्रसन्न होकर विवाह करना चाहते हैं. अपनी राय बताएं.
पर्वतराज प्रसन्नता से तुम्हारा विवाह विष्णुजी से करने को तैयार हो गए. नारदजी ने विष्णुजी को यह शुभ समाचार सुना दिया पर जब तुम्हें पता चला तो बड़ा दुख हुआ. तुम मुझे मन से अपना पति मान चुकी थी.तुमने अपने मन की बात सहेली को बताई.
सहेली ने तुम्हें एक ऐसे घने वन में छुपा दिया जहां तुम्हारे पिता नहीं पहुंच सकते थे. वहां तुम तप करने लगी. तुम्हारे लुप्त होने से पिता चिंतित होकर सोचने लगे यदि इस बीच विष्णुजी बारात लेकर आ गए तो क्या होगा.
तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक कर दिया पर तुम न मिली. तुम गुफा में रेत से शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना में लीन थी.प्रसन्न होकर मैंने मनोकामना पूरी करने का वचन दिया. तुम्हारे पिता खोजते हुए गुफा तक पहुंचे.
तुमने बताया कि अधिकांश जीवन शिवजी को पतिरूप में पाने के लिए तप में बिताया है. आज तप सफल रहा. शिवजी ने मेरा वरण कर लिया. मैं आपके साथ एक ही शर्त पर घर चलूंगी यदि आप मेरा विवाह शिवजी से करने को राजी हों.
पर्वतराज मान गए. बाद में विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया. हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका. इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनवांछित फल देता हूं. उसे तुम जैसा अचल सुहाग का वरदान प्राप्त होता है.