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गृहस्थ आश्रम को मनुष्य के लिए आवश्यक और मोक्ष का कारक बताया गया है. मार्कंडेय और गरुड़ पुराण में प्रजापति रुचि की कथा से यह बात स्पष्ट हो जाती है.
प्रजापति रुचि की किसी भी भौतिक वस्तु में कोई रुचि न थी. सांसारिकता उन्हें छू भी नहीं गयी थी. रुचि ने न तो अपना घर बसाया और न ही किसी ऐश्वर्य भोग की चाहत. वह विरक्त-भाव से संसार में विचरण करते थे.
ब्रह्माजी ने प्रजापति की व्यवस्था सृष्टि की वृद्धि और उसकी रक्षा के लिए की थी. यदि प्रजापति विरक्त हो जाए तो सृष्टि के कार्य में बाधा पड़ती है. इससे ब्रह्मा की अवहेलना होती है.
उनके पितर भी दुखी थे कि यदि रुचि ने विवाह न किया तो कुल ही डूब जायेगा. अपनी संतान-परंपरा वह कैसे चला सकेंगे. पितरों ने रुचि को कर्तव्य बोध कराने का निर्णय लिया ताकि संसार का कल्याण हो सके.
रुचि के पितर रुचि के पास आए और कहा, ‘बेटा! गृहस्थ पुरुष ही समस्त देवताओं, पितरों, ऋषियों और अतिथियों की पूजा करके पुण्यमय लोकों को प्राप्त करता है.
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