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युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा- पितामह क्या कभी शत्रु के साथ मैत्री हो सकती है? उस मैत्री का क्या भविष्य होता है? पितामह ने कहा- शत्रु के साथ सावधानीपूर्ण और क्षणिक मैत्री की जा सकती है जैसे चूहे ने बिलाव से किया था.

पितामह ने कथा सुनानी आरंभ की. एक वन में बरगद का विशाल वृक्ष था. उसमें बहुत से सांप और पक्षी रहते थे. बरगद की डाली पर लोमश नामका बिलाव रहता था जो पक्षियों को खा जाता था.

उसी वन में एक बहेलिया भी रहता था जो पशु-पक्षियों को जाल में फंसा लेता था. एक दिन बिलाव बहेलिए के जाल में फंस गया. बिलाव के फंसने से सभी पशु-पक्षी बड़े खुश हुए और वे सबसे ताकतवर शत्रु के संकट में आने से निर्भय होकर घूमने लगे.

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