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पिछली कथा में आपने पढ़ा- शिवजी ने दसानन वध में सहायता करने और श्रीराम की सशरीर सेवा के लिए हनुमान अवतार लेने का निर्णय किया. राहु ने एकबार सूर्यदेव को ग्रसने की कोशिश की थी और पवनसुत ने उसे खूब मजा चखाय़ा था.

शिवजी ने अपने एकादश रूप को स्वर्ग की अभिशप्त अप्सरा पुंचिकस्थला जो वानर रूप में अंजना बन गई थीं, उसके गर्भ से जन्म लेने की युक्ति निकाली.

अंजना और केसरी में बड़ा प्रेम था लेकिन उनके कोई संतान न थी. नारदजी ने उन्हें बताया था कि उनके घर में दिव्य पुत्र का जन्म होने वाला है.

शिवजी को अंजना के घर में अवतार लेना था. उन्होंने पवनदेव को बुलाया और अपना दिव्य पुंज देकर उन्हें आदेश दिया कि इस पुंज को अंजना के गर्भ में स्थापित कर दें.

एक दिन अंजना मनुष्य रूप में में विचरण कर रही थीं उस समय तेज हवा के झोंके से उन्हें यह महसूस हुआ कि कोई उन्हें स्पर्श कर रहा है.

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