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एक दिन भुशुंडी ने भगवान शिव के मन्दिर में अपने गुरु का अपमान कर दिया। महादेव भुशुंडी के इस व्यवहार से बड़े क्रोधित हुए। तभी आकाशवाणी हुई- मूर्ख तुमने गुरु का निरादर किया है। इसलिए तू सर्प योनि में जाएगा। सर्प योनि के बाद भी तुझे 1000 बार अनेक योनियों में जन्म लेना पड़ेगा।
गुरु बड़े दयालु थे। उन्होंने अपने शिष्य की शाप से मुक्ति लिए शिवजी की स्तुति करनी शुरू की। गुरु द्वारा क्षमा याचना पर आकाशवाणी हुई- मेरा शाप व्यर्थ नहीं जायेगा। इसे 1000 बार जन्म तो लेना ही पड़ेगा किन्तु यह जन्म और मृत्यु की पीड़ा से मुक्त रहेगा और इसे इसे हर जन्म की बातें याद रहेंगी।
भुशुंडी ने विन्ध्याचल में सर्प योनि प्राप्त किया। कुछ समय बाद भुशुंडी अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया करता था। उसे हर जन्म की बातें याद रहती थीं। श्रीरामचन्द्रजी के प्रति भक्ति भी उसमें जाग गई।
भुशुंडी ने अन्तिम शरीर एक ब्राह्मण का पाया और ज्ञानप्राप्ति के लिए लोमश ऋषि के पास गया। लोमश ऋषि उसे जब ज्ञान देते, वह उनसे कुतर्क करने लगता। नाराज होकर लोमश ऋषि ने उसे चाण्डाल पक्षी (कौआ) होने का शाप दे दिया।
शाप देने के बाद ऋषि को पश्चाताप हुआ। उन्होंने कौए को राममन्त्र देकर इच्छा मृत्यु का वरदान दे दिया। चूंकि भुशुंडी को कौए का शरीर पाने के बाद वरदान में राममन्त्र और इच्छामृत्यु का वरदान मिला इसलिए उसे इस शरीर से प्रेम हो गया।
वह कौए के रूप में ही रहकर राम कथा सुनाने लगे तथा काकभुशुण्डी के नाम से विख्यात हुए।
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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