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कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी कहा जाता है, पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था. माना जाता है कि अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया और अगले दिन कंस का वध किया.
अक्षय नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान श्रीविष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं. भगवान विष्णु ऐसा ब्रह्माजी को दिए अपने एक वचन को निभाने के लिए करते हैं.
भगवान ने ब्रह्माजी को ऐसा क्या वचन दिया था उसकी कथा अगले पोस्ट में बताएंगे. अभी अक्षय नवमी या आंवला नवमी की पूजा की सरलतम वैदिक विधि और कथा विस्तार से सुनिए.
संतानहीन स्त्रियां खासतौर से संतान की कामना के साथ अक्षय नवमी को आंवला पेड़ की पूजा, परिक्रमा और दान आदि करती हैं. अक्षय नवमी की कथा में एक निःसंतान दंपत्ती को इस पूजा के प्रभाव से संतान की प्राप्ति की बात कही गई है.
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