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जटायु बहुत बुद्धिमान थे. उन्होंने दशरथ को सुझाव दिया- जो राजा अपने प्रजा की हितों की रक्षा न कर पाए वह तो ऐसे ही राज्यविहीन हो जाता है. उसके राज्य पर किसी अन्य का आधिपत्य हो जाता है.

आपने असुरों के विरूद्ध संग्राम में इंद्र की सहायता की है इसी कारण आप सशरीर इंद्रलोक में आते जाते रहते हैं, आतिथ्य मिलता है.

यदि आज आप शनिदेव से पराजित होने के बाद शांत रह गए तो आपका वह गौरव समाप्त हो जाएगा. फिर इंद्र भी आपको सम्मान न देंगे. आपको शनिदेव के पास पुनः पराक्रम का परिचय देना चाहिए. संभवतः यही मार्ग है.

राजा दशरथ को बात जम गई. उन्होंने फिर से रथ बनाया और सुसज्जित होकप पुनः शनिदेव को चुनौती देने पहुंचे.

शनि को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरी क्रोपदृष्टि के आगे तो देवता हार जाते हैं परंतु एक मानव इसे सहकर फिर से उन्हें चुनौती देने आ गया है!

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