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देवराज इंद्र यह देखने के लिये उस जंगल तक आये कि वह कौन सा धर्मात्मा तोता है कि मरते वृक्ष के लिये अपने प्राण दे रह है. जब इंद्र आये तो उस धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया.
इंद्र ने कहा, देखो भई इस पेड़ पर न पत्ते हैं न फूल न फल और अब इस पर दोबारा फल फूल आने की कौन कहे इसको बचने की भी कोई उम्मीद बची नहीं है. इसका सूख कर ठूंठ बन जाना निश्चित है.
इस जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं जिनके बड़बड़े कोटर पत्तों से ढंके हैं और पेड़ भी फल फूल से लदे हैं, वहां से सरोवर भी पास है. तुम समझदार भी हो फिर इस नष्ट होते पेड़ पर क्या कर रहे हो,वहां क्यों नहीं चले जाते?
तोते ने जवाब दिया, देवराज, मैं इसी पर पैदा हुआ, इसी पर बढा, अच्छे अच्छे गुण सीखे, इसके मीठे फल खाये, इसने मुझे मेरे दुश्मनों से कई बार बचाया. इसके साथ मैंने बहुत से सुख भोगे हैं.
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