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काल ने हंसकर कहा- मित्र यह मेरे लिए धूल से अधिक कुछ भी नहीं है. धन-दौलत, शोहरत, सत्ता, ये सब लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है, मुझे नहीं.
मनुष्य ने पूछा- क्या कोई ऐसी वस्तु नहीं जो तुम्हें भी प्रिय हो, जिससे तुम्हें लुभाया जा सके. ऐसा कैसे हो सकता है!
काल ने उत्तर दिया- यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते. यह ऐसा धन है जिसके आगे मैं विवश हो सकता था. अपने निर्णय पर पुनर्विचार को बाध्य हो सकता था. पर तुम्हारे पास तो यह धन धेले भर का भी नहीं है.
तुम्हारे ये सारे रूपए-पैसे, जमीन-जायदाद, तिजोरी में जमा धन-संपत्ति सब यहीं छूट जाएगा. मेरे साथ तुम भी उसी प्रकार निवस्त्र जाओगे जैसे कोई भिखारी की आत्मा जाती है.
काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय-हाय करके रोने लगा.
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