सत्संग के वचन को केवल कानों से नही, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है.
एक शिष्य अपने गुरुजी के पास आकर बोला- “गुरु जी हमेशा लोग प्रश्न करते हैं कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता? मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है.”
गुरु जी समयज्ञ थे. वह बोले- “वत्स जाओ, एक घडा मदिरा यानी शराब लेकर आओ.”
शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही आवाक् रह गया. गुरू जी शराब मांग रहे हैं. वह हैरानी में पड़ा सोचता ही रह गया.
गुरू जी ने कहा- इतना सोचते क्या हो, जाओ एक घडा मदिरा लेकर आओ. गुरू का आदेश था सो मानना ही था. बेचारे अनमने मन से चला मदिरा लाने.
कुछ देर बाद बाजार से किसी प्रकार एक छलाछल भरा मदिरा का घडा लेकर वापस गुरूजी के पास आश्रम में आया. गुरुजी के समक्ष मदिरा का घड़ा रख बोला- आपकी आज्ञा का पालन कर लिया है गुरूजी.
अब गुरुजी बोले- तुम यह सारी मदिरा पी जाओ. एक तो मदिरा ही लाने में वह न जाने किन-किन मानसिक झंझावातों में घूम रहा था. अब तो उसे पी जाने का आदेश मिल गया.
उसका तो दिमाग ही चकरा गया. वह अचंभित विचारों में खोया था कि गुरुजी बोल पड़े- शिष्य, एक बात का ध्यान रखना है. मदिरा को मुंह में लेने के बाद तुरंत कुल्ला करके थूक देना. एक बूंद मदिरा भी गले के नीचे नहीं उतारनी है.
शिष्य ने वही किया. शराब मुंह में भरकर तत्काल थूक देता. देखते-देखते घडा खाली हो गया. आकर गुरुजी से कहा- गुरुदेव आपके आदेश के अनुसार ही किया. घडा खाली हो गया.
गुरुजी ने पूछा- अब बता तुझे नशा हुआ या नहीं? शिष्य बोला- गुरुदेव, नशा तो बिल्कुल नहीं आया.
गुरुजी बोले- तुम अरे मदिरा का पूरा घडा खाली कर गये और नशा नहीं चढा? यहां तो लोग कुछ घूंट में ही लडखड़ाने लगते हैं, नशे में झूमने लगते हैं. क्या नकली मदिरा लेकर आय़ा था.
शिष्य ने कहा- गुरुदेव मदिरा तो असली थी पर नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती. गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई, फ़िर नशा कैसे चढता?
अब गुरुजी ने समझाया- बस फिर सत्संग का भी विधान है. ऊपर-ऊपर से जान लेते हो, सुन लेते हो जैसे कोई कथा चल रही हो. गले के नीचे तो कुछ भी उतरता ही नहीं, व्यवहार में सत्संग की बात आती ही नहीं तो सत्संग का प्रभाव कैसे पडे”
सत्संग के वचन को केवल कानों से नहीं, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है.
पांच पहर धंधा किया, तीन पहर गए सोए।
एक घड़ी ना सत्संग किया, तो मुक्ति कहाँ से होए॥
संकलनः महामंडेश्वर महंथ श्री रामस्नेही दास जी महाराज
महंथ श्रीरामस्नेही दास जी महाराज नासिक स्थित श्रीलक्ष्मी नारायण धाम के महंथ के रूप में श्रीभगवान के चरणों की सेवा में हैं. आप महामंडलेश्वर जैसे सम्मानित धर्मपद पर सुशोभित होकर सनातन की सेवा कर रहे हैं. आपका आशीर्वाद प्रभु शरणम् को सतत प्राप्त होता रहता है.