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काफी साल पहले की बात है, अंग्रेजी राज के जमाने की। बिहार के सीवान जिले से एक दंपति अपने तीन साल के बेटे के साथ यूपी के देवरिया पहुंचे। उनका मकसद था देवरहा बाबा से मिलना।
बाबा हमेशा की तरह बड़े ही प्रेमभाव से मिले। उनके बेटे को आशीर्वाद दिया और माता पिता को कहा, कि तुम्हारा बेटा राजा बनेगा। ग्रामीण दंपति ने इसे बाबा से स्नेह से कहे गए वचनों के तौर पर लिया क्योंकि राजा महाराजाओं को जमाना बीत चुका था।
इतिहास गवाह है आगे चलकर वह बालक भारत का प्रथम राष्ट्रपति बने। वह डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। उन्होंने अपने और देवरहा बाबा से संबंधित इस घटना का जिक्र कई जगहों पर किया और इस बाबत पत्र भी लिखा।
देवरहा बाबा एक ब्रह्मलीन जीवंत संन्यासी थी। ऐसे संन्यासी बेहद कम ही होते हैं, जो हाड़ मांस से निर्मित मायाशरीर में ब्रह्म स्थापित कर लें। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में उनका निवास था। देवरहा बाबा जमीन से लगभग कई फुट उपर बने मचान में बने रहते थे। चार पांच बड़े बड़े लट्ठों पर उनके भक्त एक छोटी सी मड़ई बना देते थे। सालोंभर बाबा इसी में निवास करते थे। वे शायद ही कभी अपने मचान से उतरते थे।
जो भी भक्तजन उनसे मिलने आते दूर से ही उनके मन की बात को जान लेते और वैसा ही उत्तर देते। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।
सन् 1911 में ब्रिटेन के शाह जॉर्ज पंचम जब भारत आए,तो विशेष तौर पर देवरहा बाबा के दर्शन करने के लिए देवरिया पहुंचे। दरअसल जॉर्ज पंचम ने भारत के साधु संन्यासियों के बारे में कई कहानियां सुनी थीं।
इंग्लैंड से रवाना होते समय उन्होंने अपने भाई प्रिंस फिलिप से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संतों में शक्तियां होती हैं।
फिलिप ने जवाब दिया- हां, अगर तुम्हें कोई शक हो तो देवरहा बाबा से जरूर मिलना।
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