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विभीषण को लगा कि भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. उन्होंने श्रीरामजी से कुछ बताने से पहले हनुमानजी को ही सारी चिंता बताई.

वानर सेना में विमर्श हुआ और श्रीराम-लक्ष्मण की सुरक्षा का जिम्मा परमवीर हनुमानजी को राम-लक्ष्मण को सौंप दिया गया.

अहिरावण-महिरावण ने विभीषण के प्रति भी प्रतिशोध का भाव था इसलिए उनकी निगरानी और सुरक्षा की भी विशेष व्यवस्था की गई.

राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी. हनुमानजी ने भगवान श्रीराम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया.

कोई जादूटोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था.

अहिरावण और महिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे. ऐसे में उन्होंने एक चाल चली.

महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया.

राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे. दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की और लेकर चल दिए.

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