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ब्रह्माजी ने रघु से वह बाण लिया और ले जाकर अगस्त्य मुनि को दे दिया. वनवास काल मे जब श्रीराम अगस्त्य मुनि के पास आए तो उन्होंने श्रीराम को वह बाण दिया जिससे रावण का वध हुआ.
रघु के आगे विवश होने के बाद भी रावण नहीं माना. रघु के बाद अज राजा बने. रावण महाराज अज के पास भी पहुंचा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा. उस समय महाराज अज संध्यापूजन कर रहे थे.
अज बोले- मेरे परम पराक्रमी पिताजी ने आपसे युद्ध नहीं किया. हम पुलस्त्यवंशियों का सम्मान करते हैं. मैं अपने पिता से विमुख कैसे हो सकता हूं. मैं अभी संध्या कर रहा हूं. आप युद्ध का विचार टाल दें.
अज समझाते रहे लेकिन हठी रावण किसी की सुनता कहां था. उसपर तो ब्रह्माजी का लिखा विधान बदलने की धुन सवार थी सो वह युद्ध के लिए अड़ा रहा. उसने कहा कि संध्यावंदन के बाद युद्ध करो, मैं प्रतीक्षा करूंगा.
विवश होकर अज मान गए. रावण वहीं प्रतीक्षा करने लगा. अचानक उसने देखा कि अज ने दो चावल के दाने अलग-अलग दिशा में फ़ेके. रावण बड़ा कर्मकांडी था. यह देख उसे आश्चर्य हुआ.
उसे भी मालूम था कि संध्या की इस विधि में चावल फ़ेंकने का विधान नही है तो उसने अज से पूछा कि ये चावल फ़ेकने विधान तो इस कर्म में नही है फिर आपने चावल क्यों फ़ेंके. आपकी पूजा खंडित हो गई.
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Bahut achha lagata hai jab aisi katha sunane ko milati hai man sidha prabhu ke charano mai pahunch jata hai jai shree
ram