देवकार्य के लिए कामदेव शिवजी की साधना भंग करने को सहमत हुए हैं. उन्हें यह आभास भी है कि इस कार्य को करने की चेष्टा में उनका जीवित बचना संभव नहीं. देवताओं ने उनकी शक्तियों की बहुत प्रशंसा भी कर दी है.
मद में भरे कामदेव अपना प्रभाव दिखाते हुए शिवलोक की ओर चले. कामदेव गर्व में भरे अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं किंतु इससे पृथ्वी की व्यवस्था बिगड़ गई. विरक्त हृदयों में आसक्ति आ गई है. संसार भोगमय हो गया है.
किंतु शिवलोक पहुंचते ही कामदेव का प्रभाव ठहर गया है. शिव निष्काम हैं. उनके लोक में प्रवेश करते काम की गति पर लगाम तो लगनी ही थी. संसार की व्यवस्था पूर्ववत हो गई है.
काम शिवजी के ऐसे प्रभाव को देखकर स्तब्ध है. उसका मानमर्दन हो चुका है और उसने पराजय स्वीकार ली है लेकिन वह बड़े गर्व से चला है. वापस लौटकर उपहास का पात्र बनने से अच्छा है नष्ट हो जाना. यही सोचकर कामदेव शिवजी की तपस्या भंग करने को उद्धत है.
भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे॥
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना॥2॥
कामदेव ने संसार से अपना प्रभाव समेटा तो तुरंत ही सब जीव वैसे ही सुखी हो गए, जैसे मतवाले या नशा करने वाले लोग मद या नशा उतर जाने पर सुखी हो जाते हैं.
जिन्हें पराजित करना अत्यन्त कठिन है, उस दुराधर्ष और जिन्हें पार पाना कठिन है ऐसे दुर्गम भगवान शिव सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य रूपी छह ईश्वरीय गुणों से युक्त महाभयंकर दिख रहे हैं जससे कामदेव भयभीत हो गया.
देवताओं द्वारा उसका दिए जाने से उतराते हुए कामदेव आ तो गए हैं शिवजी का तप भंग करने किंतु भगवान का स्वरूप देखने के बाद आभास हो जाता है कि यह कार्य उनके बस का नहीं है. महादेव के तपश्तेज के सामने कामदेव खड़े भी नहीं हो पा रहे.
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई॥
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा॥3॥
फिर भी अब गया तो लौटे कैसे! लौट जाने में हंसाई होगी और प्रयास करने पर कोई परिणाम नहीं निकलेगा, कामदेव के लिए बड़ा असमंजस मालूम होता है.
आखिर उसने मन में मृत्यु का निश्चय करके कुछ उपाय सोचा. उसने तुरंत ही सुंदर ऋतुराज वसन्त को प्रकट किया. फूले हुए नए-नए वृक्षों की कतारें सुशोभित हो गईं.
बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा॥
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा॥4॥
वन-उपवन, बावली-तालाब और सभी दिशाएं तक परम सुंदर हो गईं. जहां-तहां मानो प्रेम उम़ड़ रहा है, जिसे देखकर मृत मनों में भी कामदेव जाग उठा.
छंद:
जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही॥
बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा
मरे हुए मन में भी कामदेव जागने लगा, वन की सुंदरता कही नहीं जा सकती. कामरूपी अग्नि का सच्चा मित्र शीतल-मन्द-सुगंधित पवन चलने लगा.
सरोवरों में अनेकों कमल खिल गए, जिन पर सुंदर भौंरों के समूह गुंजार करने लगे. राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे और अप्सराएँ गा-गाकर नाचने लगीं.
दोहा :
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों प्रकार की सब कलाएँ करके हार गया पर शिवजी की अचल समाधि न डिगी. तब कामदेव क्रोधित हो उठा.
चौपाई :
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥
आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर मन में क्रोध से भरा हुआ कामदेव उस पर चढ़ गया. उसने पुष्प धनुष पर अपने पाँचों बाण चढ़ाए और अत्यन्त क्रोध से लक्ष्य की ओर ताककर उन्हें कान तक तान लिया.
कामदेव के पांच बाण मारन, स्तंभन, जृंभन, शोषण और उम्मादन ऐसे अचूक माने गए हैं जो मृत शरीर में भी अभिलाषा और लिप्सा उत्पन्न कर दे. पांचों बाणों का एक साथ संधान करके काम ने अचूक अस्त्र बना लिया है और शिवजी को लक्ष्य करता है.
छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि संभु तब जागे॥
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥2॥
कामदेव ने अपने तीक्ष्ण पाँचों बाण छोड़े, जो शिवजी के हृदय में लगे. इससे शिवजी की समाधि टूट गई और वह जाग गए. शिवजी के मन में बहुत क्षोभ हुआ. उन्होंने आँखें खोलकर सब ओर देखा.
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥3॥
जब शिवजी ने आम के पत्तों में छिपे हुए कामदेव को देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध हुआ. उस क्रोध से तीनों लोक काँप उठे. तब क्रोधित शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला और पलभर में कामदेव जलकर भस्म हो गया.
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी॥4॥
जगत में बड़ा हाहाकर मच गया. देवता डर गए, दैत्य सुखी हुए. भोगी लोग कामसुख को याद करके चिन्ता करने लगे और साधक योगी निष्कंटक हो गए.
संकलनः राजन प्रकाश