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पर मोरवी के हठ के आगे वह विवश हो गए और उनसे पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने सुदर्शन चक्र के प्रयोग से मोरवी का मस्तक काटने का निर्णय किया.
ज्योंहि श्रीकृष्ण ने अपना अमोघ सुदर्शन हाथ में लिया, उसी समय माता कामाख्या अपनी भक्त मोरवी के रक्षार्थ वहाँ उपस्थित हो गईं.
देवी ने मोरवी से कहा- जिस महारथी से तू संग्राम कर रही है यही भगवान श्रीकृष्ण तेरे ससुर होंगे. इनकी शरणागत होकर इच्छित वरदान मांग ले.
माता के आदेश पर मोरवी ने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और शांत होकर श्रीकृष्ण भगवान को प्रणामकर आशीर्वाद लिया. श्रीकृष्ण की कृपा से ही मोरवी का विवाह भीमपुत्र घटोत्कच से हुआ.
उपस्थित लोगों को यह वृत्तान्त सुनाकर देवी चण्डिका ने पुनः कहा- मोरवीनंदन का उद्धार स्वयं भगवान ने किया है. इसलिए आपको शोक नहीं करना चाहिए.”
श्रीकृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को रणभूमि में प्रकट हुई चौदह देवियों सिद्ध, अम्बिका, कपाली, तारा, भानेश्वरी, चर्चि, एकबीरा, भूताम्बिका, सिद्धि, त्रेपुरा, चंडी, योगेश्वरी, त्रिलोकी और जेत्रा द्वारा अमृत से सिंचित करवाकर उसे देवत्व प्रदान करके अजर अमर कर दिया.
नवीन जाग्रत शीश ने उन सबको प्रणाम किया और युद्ध देखने की अनुमति मांगी.
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