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अंतर्यामी भगवान सब समझ गए. उन्होंने श्रमणा से कहा- बड़ी भूख लगी है. आपके पास जो बेर हैं वही खाने को दे दो.
संकोच में श्रमणा पके और मीठे बेर चुनने लगी. लेकिन जिसके दर्शन के लिए इतने सालों से आंखे तरस रही थीं उसके चेहरे से नजर हटाने का जी नहीं करता था.
उसने अंजाने में मीठे बेरों का पता लगाने के लिए उन्हें चखना आरंभ कर दिया. जो बेर चखने के बाद मीठे लगते उसे प्रभु को अर्पण कर देती.
भक्तवत्सल श्रीराम भी उसकी सरलता पर मुग्ध थे. वह भी श्रमणा के जूठे बेर खाते रहे.
जब श्रमणा को अहसास हुआ कि उसने भगवान को जूठा खिला दिया है, तो वह यह सोचकर रोने लगी कि इस पाप के लिए उसे नर्क भोगना पड़ेगा.
प्रभु ने उसे चुप कराया और कहा आपने वैसा ही व्यवहार किया है जैसा एक मां अपने बच्चे के साथ करती है.
इस संसार में आपका जीवनकाल पूरा हुआ. अब आप स्वर्गलोक में निवास करें. श्रीराम की कृपा से श्रमणा का उद्धार हो गया.
यही श्रमणा शबरी के नाम से जानी जाती हैं. शबरी के बेर खाकर प्रभु ने जाति-भेद बंधन मिटाने का अच्छा संदेश दिया था.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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