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मतंग ऋषि सोच में पड़ गए. लेकिन उसकी रामभक्ति को देखकर उन्होंने श्रमणा को अपने आश्रम में रहने की अनुमति प्रदान कर दी.
श्रमणा के व्यवहार आश्रमवासी बड़े प्रसन्न रहते. वह सबकी प्रिय बन गई. इस बीच जब उसके पति को पता चला कि वह मतंग ऋषि के आश्रम में रह रही है तो वह आग−बबूला हो गया.
श्रमणा को आश्रम से उठा लाने के लिए वह अपने कुछ हथियारबंद साथियों को लेकर चल पड़ा. मतंग ऋषि को इसके बारे में पता चल गया.
श्रमणा भयभीत थी. उसे लग रहा था कि जिस दलदल को छोडकर भागी है दोबारा उसी वातावरण में जाना पड़ेगा.
ऋषि उसका दर्द समझ रहे थे. उन्होंने उसकी रक्षा का वादा किया उसके चारों ओर अग्नि पैदा कर दी.
जैसे ही उसका पति आगे बढ़ा, उस आग को देखकर डर गया और वहां से भाग खड़ा हुआ. इस घटना के बाद उसने फिर कभी श्रमणा की तरफ क़दम नहीं बढ़ाया.
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