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अंरूधति और वशिष्ठ के विवाह का प्रसंग सुनाने के बाद ब्रह्माजी ने नारद से कहा- पुत्र मैं तो शिवजी के मोह से ग्रस्त पथभ्रष्ट हुआ औऱ शिवजी ने ही मेरी रक्षा भी की. किंतु इसके बाद शिवजी ने मेरी बड़ी निंदा की. मेरा बहुत उपहास किया.

इस निंदा-उपहास से मैं बहुत दुखी और लज्जित था. यह स्वाभाविक भी था. मैं शिवजी से नाराज था. मेरा रोष धीरे-धीरे वैर और फिर प्रतिशोध का रूप धारण करता चला गया. माया से पुनः ग्रसित और शिवजी से प्रतिशोध लेने की बात मन में चलने लगी.

ब्रह्माजी ने महादेव से प्रतिशोध लेने के लिए क्या किया? शिवजी के विवाह से उस प्रतिशोध का क्या संबंध था. यह सब शीघ्र ही बताएंगे शिव पुराण की शृंखला में.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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