शिवपुराण की कथा ब्रह्माजी अपने पुत्र नारद को सुना रहे हैं. पिछली कथा से आगे,
दक्ष ने सभी पुत्रियों का विवाह कर दिया जिनसे सृष्टि निर्माण आरंभ हुआ. मैं इससे अत्यंत प्रसन्न था. अब मैंने तक्ष को पुनः भगवती के वरदान का स्मरण कराया. दक्ष ने अपनी पत्नी के साथ भगवती को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए स्तुति आरंभ की.
देवी प्रसन्न होकर प्रकट हुईं और वैरिणी के गर्भ में स्थापित हो गईं. दसवें महीने में देवी प्रकट हुईं. देवी के प्रकट होने से दक्ष की समृद्धि और प्रताप में वृद्धि हो गई थी. उनकी पुत्री शिवा रूप-गुण में इतनी संपन्न थी कि जो देखता था, देखता ही रह जाता.
शिवा के युवती होने पर नारद मैं तुम्हारे साथ उनसे मिलने गया और उन्हें प्रकट होने का कारण स्मरण कराया. शिवा, महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप करने को तैयार हुईं. मेरी बताई विधियों से वह तप में लीन हो गईं.
इसके बाद मैं और विष्णुजी अपनी पत्नियों के साथ भगवान शिव का दर्शन करने शिवलोक पहुंचे. शिवजी ने हमारा उचित स्वागत-सत्कार किया फिर बोले- आज आप लोग पत्नी सहित आएं हैं. अवश्य ही कोई विशेष बात है.
मैंने कहा- हमने आपके आदेश से विवाह कर लिया किंतु आप अभी तक विरक्त हैं. आपको तो ज्ञात ही है बहुत से ऐसे असुर उत्पन्न होंगे जिनका वध सिर्फ आपके तेज से उत्पन्न संतान द्वारा ही होगा.
सृष्टि का अहित करने वाले असुरों को दंड मिलना चाहिए. आपको वे प्रसन्न कर लें और संभव है आप उन्हें दंड न दें किंतु इससे आपके ही द्वारा बनाई गई व्यवस्था बिगड़ सकती है. लोकहित में आप एक ऐसी देवी से विवाह करें जो आपकी शक्ति बने.
शिवजी बोले- मैं आपके विचार का सम्मान करता हूं किंतु मुझ जैसे विरक्त के साथ कोई स्त्री प्रसन्न न रह सकेगी. विवाह का बंधन मेरे जैसे योगियों के लिए नहीं है. मेरी विवाह में रूचि नहीं है.
परंतु आपने विधि-व्यवस्था की बात की है. इसलिए लोकहित मैं ऐसी किसी रमणी से विवाह कर सकता हूं जो मेरे साथ योग में योगिणी रहे और भोग के समय ही भोगिनी बने. क्या ऐसी कोई कन्या है?
मैंने तत्काल कहा- हां महेश्वर ऐसी एक कन्या है जो आपके कहे अनुसार है. भगवती उमा इस बार तीन रूपों में प्रकट हुई हैं. देवी ने लक्ष्मीरूप में श्रीहरि का, सरस्वतीरूप में मेरा वरण किया है. सतीरूप में आपकी अर्धांगिनी बनने को इच्छुक हैं.
श्रीहरि ने भी मेरी बात का समर्थन किया और शिवजी को इसके लिए समझाया. हम दोनों की बातों का सम्मान करते हुए भोलेनाथ विवाह को सहमत हो गए. उन्होंने तपस्या में रत सती को दर्शन दिए.
(शिव पुराण रूद्र संहिता, सती खंड-2) क्रमशः जारी ….
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश