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भगवान शिव थे श्रीराम के अनन्य भक्त. रामचरितमानस में शिवजी के श्रीराम के दर्शन के लिए आने के कई प्रसंग हैं. एक प्रसंग तो देवी सती के आत्मदाह से भी जुड़ा है. पहले बालक श्रीराम के दर्शन से जुड़ा प्रसंग सुनाते हैं.

जब श्रीराम ने राजा दशरथ के यहां अयोध्या में अवतार ले लिया तो भोलेनाथ के मन में श्रीराम के दर्शन की प्रबल इच्छा पैदा हुई. परंतु परेशानी यह थी आखिर कैसे करें दर्शन.

असली रूप में गए तो लालसा पूरी न होने पाएगी. रूप बदल कर गए तो राजमहल में सुरक्षा कड़ी रहती होगी. इस पर भी अगर किसी तरह पहुंच गए तो उनकी माता क्यों उन्हें किसी अपरिचित के साथ खेलने दें.

भोलेनाथ विचार करने लगे. उन्हें एक युक्ति सुझी. उन्होंने श्रीराम के परमभक्त काक भुशुंडी को बुलाया और उन्हें साथ लेकर अयोध्या चल दिए. अयोध्या पहुंचते ही महादेव ने ज्योतिषी का रूप धरा और काक भुशुंडी को शिष्य बना लिया.

अयोध्या की गलियों में दोनों ने बहुत चक्कर मारा लेकिन श्रीराम के दर्शन का कोई मौका हाथ न लग सका. दोनों गुरू-शिष्य कुछ विचार करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठे. शिवजी ने आसन जमा लिया.
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