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भगवान सूर्य तथा छाया के पुत्र शनिदेव जब गर्भ में थे, तब छाया ने शिवजी की घोर तपस्या की. तपस्या के दौरान छाया ने अन्न त्याग दिया था. आहार न लेने के कारण छाया के गर्भ में स्थित बालक शनिदेव का रंग काला पड़ गया.
तेजस्वी सूर्य इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनकी संतान इतनी काली होगी. सूर्यदेव को छाया के चरित्र पर संदेह हुआ और उन्होंने काले रंग के शनि को अपनी संतान नहीं माना. अपमानित छाया ने शनिदेव से कहा कि तुम्हें ही मुझे इस अपमान से उबारकर सम्मानित कराना होगा.
शनिदेव ने घोर तपस्या की और भगवान शंकर को प्रसन्न किया. शिवजी ने वरदान मांगने को कहा. शनिदेव ने मांगा कि उनकी माता को कैलाश पर सम्मानित रूप से स्थान मिले. भगवान शिव बालक की मातृभक्ति से बहुत प्रसन्न हुए.
शिवजी बोले बालक तुमने माता के सम्मान के लिए इतनी घोर तपस्या की है इसलिए तुम ग्रहों के बीच दंडाधिकारी की तरह स्थित रहोगे. शनिदेव श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. शनिदेव का विवाह चित्ररथ की तेजस्विनी पुत्री से हुआ.
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