राजा विक्रमादित्य ने बेताल बने रुद्रकिंकर द्वारा उन्हें निरुत्तर कर देने का हर प्रयास असफल कर दिया तो इस बार रुद्र किंकर ने यों कहना शुरू किया. राजन इस बार की कथा का मर्म समझ उसका उत्तर दो तो जानूं. कहानी कुछ इस तरह है-
कलिंग देश में शोभावती नामक एक बहुत सुंदर नगर है. कभी इस नगर पर राजा प्रद्युम्न राज करता था. उसी शोभावती नगरी में एक ब्राह्मण रहता था जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था.
देवसोम इतना कुशल, और तीव्र बुद्धि वाला था कि सोलह बरस का होते होते सारी विद्याएं सीख चुका था. इतना होनहार बालक एक दिन दुर्भाग्य से असमय ही मर गया.
बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए. जिसने सुना उसने दुःख जताया. नगर में, ब्राह्मण समुदाय में चारों ओर शोक छा गया. लोग उसे लेकर रोते-छाती पीटते श्मशान में पहुंचे.
तेह आवाज में रूदन और छाती कूटने की आवाज़ सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया. पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा.
फिर देखते ही देखते अपने योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर परकाया प्रवेश के मध्यम से वह उस लड़के के शरीर में घुस गया. लड़का उठ खड़ा हुआ.
लड़के को जीता जागता देखकर सब बड़े खुश हुए. सबने श्मशान में ही खूब खुशियां मनायीं और लड़के को गाजे-बजे के साथ गाते बजाते घर वापस ले जाने की तैयारी करने लगे.
पर वह लड़का, घर वापस जाने को राज़ी न हुआ. वह लड़का वहीं बैठ गया और तपस्या करने लगा. इतना कहकर बेताल बना रुद्रकिंकर बोला- राजन्, यह बताओ कि यह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा?
राजा विक्रमादित्य ने कहा- इसमें आश्चर्य की क्या बात है! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएं सिद्धियां प्राप्त कीं, उसे छोड़ रहा था.
योगी हंसा इसलिए कि वह इस बिल्कुल नए और अत्यंत युवा शरीर में प्रवेश करके और अधिक समय तक जिंदा रहेगा तथा बहुत सी दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त कर सकेगा.
बेताल ने कहा- हे राजन! मुझे इस बात की खुशी है कि बिना जरा-सा भी हैरान हुए तुम अब तक मेरे सवालों का जवाब देते रहे हो और बार-बार आने-जाने की परेशानी उठाते रहे हो. अगली बार मैं तुमसे जो सवाल करूँगा, सोचकर उत्तर देना.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश