एक बार बालक गणेशजी पाराशर ऋषि के आश्रम में मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे. तभी वहां कुछ नाग कन्याएं आ गईं.
नटखट बालक गणेश को देखकर उन कन्याओं को उन पर बड़ा प्रेम आया. उनका मन भी किया वे गणपति के साथ खेलती रहें लेकिन उन्हें समय रहते जाना था.
नाग कन्याओं ने गणेशजी से कहा कि आप हमारे साथ हमारे लोक चलिए. वहां आपको हम खूब खिलाएं-पिलाएंगे. अपने हाथों से आपके लिए उत्तम मिष्ठान्न, उत्तम पकवान बनाकर खिलाएंगे और आपकी सेवा-सत्कार करेंगे.
नाग कन्याएं बार-बार आग्रह करती रहीं नागलोक चलने की. अच्छे भोजन का प्रस्ताव लंबोदर क्यों ठुकराते भला! बिना किसी को कुछ बताए उनके साथ नागलोक चल दिए.
इधर गणेशजी अचानक बिना किसी को बताएं एकदम से गायब हुए तो आश्रम में हड़कंप मच गया. चारों तरफ उनकी खोज होने लगी.
गणेशजी तो निश्चिंत होकर नागकन्याओं के साथ नागलोक की ओर जा रहे थे. नाग लोक पहुंचने पर नागकन्याओं ने उनका हर तरह से सत्कार किया.
नागकन्याओं ने गणेशजी की पूजन-आरती की. उनको छप्पन भोग चढ़ाया. तरह-तरह दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से विभूषित कर सजाया.
तभी नागराज वासुकि ने नागकन्याओं को गणेशजी के साथ खेलते देखा. लंबे उदर और अत्यधिक भोजन में गणेशजी की रुचि देखकर वासुकि उनका उपहास करने लगे.
वासुकि ने सबसे पहले गणपति के आभूषणों का उपहास किया. फिर उनके उदर और मुख का मजाक उड़ाने लगे. गणेशजी कुछ देर तक चुपचाप सहते रहे.
उनकी सहनशीलता से वासुकि की हिम्मत बढ़ गई. वह उनको मोटी बुद्धि का बताने लगे तो गणेशजी को क्रोध आ गया. उन्होंने वासुकि को सबक सिखाने का निर्णय किया.
गणपति लपककर वासुकि के ऊपर सवार हो गए. उनके फन पर पैर रखकर दबाने लगे. इससे वासुकि तिलमिलाए. गणेशजी को आनंद आने लगा.
उन्होंने वासुकि का मुकुट निकालकर स्वयं पहन लिया. वासुकि ने प्रतिरोध की कोशिश की लेकिन गणपति के आगे वह कहां टिकते.वह जितना प्रतिरोध करते गणपति उनके फन पर उतना ही तेज नृत्य आरंभ कर देते.
कुछ ही पलों में परमवीर नागराज गणपति के पैरों के दबाव से बुरी तरह घायल होकर कराहने लगे. वह गणपति से ऊंचे स्वर में क्षमायाचना करने लगे.
गणपति उग्र हो चुके थे. वासुकि की कराह से पूरा नागलोक गूंज रहा था. बात-बात में हुए इस क्षणिक युद्ध में वासुकि पराजित हो गए.
वासुकि की दुर्दशा का समाचार सुन उनके बड़े भाई शेषनाग आ गए. उन्होंने गर्जना की-मेरे भाई के साथ किसने इस तरह का व्यवहार किया है? मैं उसे विषदंश से भस्म कर दूंगा.
वह क्रोध में फुफकार रहे थे. गणेशजी सामने आए. उनका उग्ररूप देखकर शेषनाग भी भयभीत हो गए. उन्होंने गणेशजी को पहचान कर उनका अभिवादन किया, स्तुति की.
नागकन्याओं ने शेषनाग को वासुकि द्वारा गणपति के अपमान की बात बताई. लज्जित शेषनाग ने गणेशजी से क्षमायाचना की.
शेषनाग ने गणपति को नागों को अपना कृपापात्र बनाने की विनती की और उन्हें नागलोक का राजा घोषित कर सभी नागों का स्वामी बना दिया.
गणपति का क्रोध शांत हो चुका था. उन्होंने वासुकि को नागलोक का शासन सौंपा और फिर वापस अपने गुरुकुल आ गए.