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अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे. हनुमान् जी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिलाते जा रहे थे. सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था. भगवान् चिन्ता में थे.

विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में गया है. उसी समय ब्रह्माजी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तोमैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है. आपका प्रयास बेकार ही जायेगा.

श्रीराम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदेमंद हो सकता है.जब इसके भाई बिरादर लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’. इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी. ’ मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया.बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये.

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