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भगवान श्रीराम रावण को मारने के बाद फिर लंका लौटे, कारण था कुंभकर्ण के बेटे का संहार करना. पर इस बार पराक्रम दिखाया माता सीता ने, वे चंडिका की तरह लड़ीं.

भगवान् श्रीराम राजसभा में विराज रहे थे उसी समयविभीषण वहां पहुंचे. वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लग रहे थे. सभा में प्रवेश करते ही वेकहने लगे – हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढारहा है .अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाट.

भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था. इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया. इसे अशुभ जान कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था.

जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया. मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बलके घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है. जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह भन्नाया हुआ है.

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