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अब जिसे विजय का आशीर्वाद दिया उससे युद्ध भी करना था. प्रभु ने ब्रह्मास्त्र निकाला और उसका संधान करने लगे.
उसी समय श्रीराम के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के साथ विश्वामित्र पहुंचे और प्रभु से अनुरोध किया वह ऐसा न करें. विश्वामित्र ने कहा- मैंने काशीराज को क्षमा कर दिया है. इसलिए आप उसका वध न करें.
हनुमानजी तुरंत प्रभु की सेवा में उपस्थित हुए. उन्होंने प्रभु वंदना की. उन्होंने प्रभु को सारी बात बताते हुए प्रभु के वचन की अनदेखी की विवशता बताई. भगवान उनकी वचनशीलता से बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें हृद्य से लगा लिया.
भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया- आपके कई रूप आज मैंने देखे. आप पंचमुखी रूप में भक्तों के सिर पर मंडराते काल के संकट को टालने वाले संकटमोचक होंगे.
।।सियापति रामचंद्र की जय, पवनसुत हनुमान की जय।।
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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